रिश्तों का अंत


दिल टूटा एक बार फिर,
वो दिन याद आता है शीशे में उसका आईना
ख़ुद को देख के, छुपाता हूँ रो रो के।

ख़ता क्या थी, जिसने की इतनी सजा,
मैं क्यों उसको समझू अपना,
उसने कहा था ना कभी, तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं,
पर फिर भी मैने मान लिया उस ‘कि’ बात को।

मन करता है एक बार फिर से उससे मिलने का,
पर मेरी इतनी जिद के वो मेरी ज़िन्दगी से ग़या हो,
अब एक बार फिर मत बोलना,
‘मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती’।

गु़ल्ज़ारी में यह दर्द बयां करने की कोशिश की गई है।
पर दिल का दर्द कोई एक मुकुराने से ठीक नहीं हो सकता।
उसकी यादों में खोकर, दिल रोज़ उसकी यादों में बहलता है,
और फिर कहना पड़ता है,
‘हां, वो मेरे बिना जी नहीं सकता’।

-कवि लोकेश


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Lokesh T

एक हिंदी कवि के रूप में, मैं अपने शब्दों के माध्यम से जीवन की सुंदरता, जटिलता और बारीकियों को पकड़ने का प्रयास करता हूँ। अभिव्यक्ति की इस यात्रा में मेरे साथ जुड़ें क्योंकि मैं कविता की शक्ति के माध्यम से अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को साझा करता हूँ।

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