बिछड़ने की परछाइयाँ
तुमसे मिले थे जब हम,
खुशियों का था हर मौसम,
सपनों की महक से भरा,
हर लम्हा जैसे एक कुसुम।
पर अब वे दिन हैं दूर,
सिर्फ यादों का है दौर,
तेरे बिना हर पल अधूरा,
जिन्दगी का ये नया सफर।
तेरे साए में ढूंढा मैंने,
खुशियों का हर एक रंग,
पर अब वो रंग हैं बिखरे,
जैसे आँगन में बिखरा संग।
वो हंसना, वो बातें,
अब सब हो गया मौन,
दिल के किसी कोने में,
तेरे नाम का है चैनौने।
बिछड़ना भी एक सबक है,
सिखाता है जद्दोजहद,
मगर टीस है दिल में अभी,
जवाब नहीं, बस हैं खेद।
तुझे भूलना है नादान,
पर सोचूँ तो तेरा एहसान,
हर दर्द में छिपा है ख़ुशी,
जिन्हें हम कहते थे पहचान।
अब आगे बढ़ना है हमें,
नये सपनों की तलाश में,
बिछड़कर भी तुम रहोगे,
मेरी ज़िंदगी की परछाइयों में।
-कवि लोकेश
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