विराम
तोड़ दीं ख्वाबों की डोर मैंने,
दिल के अंधेरों में अब ना सहेगा कोई साया।
तुम्हारी यादों की लहरें अब थम गईं,
इस राह के मोड़ पर, मिट गया हमारा काया।
सपने जो देखे थे, वो बिखर गए एक पल में,
ख़ुशबू से भरी थी, अब वीरान है ये मन का बाग़।
तेरा साथ था जैसे एक सुनहरा झोंका,
अब तो बस उठते धुएँ में छिपा है मेरा भाग।
जिन लम्हों को हमनें गले लगाया,
उनकी छांव में अब कड़वी धूप है।
हर मुस्कान में छिपा एक राज़ था,
अब वो यादें सिर्फ एक अधूरी ख्वाब है।
आंसुओं का समंदर, गहराई में गर्त है,
पर अब उठती लहरें भी तेरे बिना हैं।
दिल ने सिखाया है, कठिनाइयों का संग,
हर रिश्ते की परछाई में, एक दिन छिपा है ये छंद।
मुझे खुद को फिर से खोजना होगा,
तुझसे बिछड़कर फिर से जीना होगा।
हर अदाएँ, हर एहसास तेरे बिना,
एक नई कहानी, एक नया सफ़र तय करना होगा।
तो चल, विराम दे इस बंधन को,
भले ही दिल में हो एक गहरी धड़कन को।
ज़िंदगी का ये चक्र चलता रहेगा,
तेरी यादों का दीप जलता रहेगा।
-कवि लोकेश
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