बेवफ़ाई की परछाईं
तेरे ख्वाबों का शहर, अब सुनसान हो गया,
पलकों पे रखा था, प्यार अब न गुमान हो गया।
हर लम्हा तेरा, जैसे सुबह का सूरज,
अब काली रातों में, बिछड़ने का आंसू बन गया।
तेरे हंसी-ठिठोली, जैसे मीठी यादों की बातें,
अब दर्द की लहरों में, हर मोड़ पर बस ख़ामोशी है।
साथ चले थे हम, सपनों के आसमान में,
अब दूरियों की रेखा, खींच दी तख़्त-ए-दिल पर।
तू एक किताब, जिसके पन्ने फड़फड़ाए,
मगर अब ये कहानी, कहीं अधूरी रह गई।
इश्क की राहों में, मिले थे हम एक दिन,
पर अब बेवफ़ाई की परछाईं, खुद को छुपाए बैठी है।
रुख्सत हो गई है वो, यादें जिनसे सजी थी,
मेरी दुआओं में अब, सिर्फ तन्हाई रह गई।
चलूँ मैं अब, इन यादों की राहों से,
दिल का ये बोझ सहूँ, और मुस्कुराने की कोशिश करूँ।
-कवि लोकेश
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