विरह की रात
चाँदनी रात में, तन्हाई की बातें,
ख्वाबों के शहर में, अब नहीं वो साथ हैं।
तेरे हंसी के पल, अब यादों में गूंजते,
खुशियों की तस्वीरें, अब बस धुंधले हैं।
वो मीठी बातें, अब कड़वी लगती हैं,
दिल के वीराने में, बस तन्हाई चुप्पी है।
जब भी निकलता हूँ, तेरी राहों से गुज़र,
हर मोड़ पर तेरी याद, देती है मुझको डर।
तुम थे मेरे लिए, जैसे रोशनी की किरण,
अब उस अंधेरे में, खो गया मेरा मन।
इश्क की कहानी, अधूरी रह गई,
सपनों की बुनाई, बिखर गई हर कहीं।
पर मैं सीख गया हूँ, इस दर्द के सबक से,
हर विरह की रात्रि, नई सुबह लाती है।
चलूंगा आगे मैं, नए सफर की ओर,
छोड़कर पीछे, तेरी यादों की दस्तक।
-कवि लोकेश
Discover more from Kavya Manthan
Subscribe to get the latest posts sent to your email.