बिछड़ गए हम, तुम्हारे बिना
दिल का दर्द, दिल की छुट्टी
कभी न मिलेंगे फिर से हम
तुम्हारी छोड़ी हुई रुत
कहीं न कहीं हमें भी तो पता था
की ये मोहब्बत का सफर है बस कोई सफार
लेकिन दिल न पाया सकून उसके बिना
खिली थी सिर्फ उसी की बिना
बिछड़ गए हम, तुम्हारे बिना
चीरे एक और दर की छुट्टी
कुछ रातें गुज़र गईं जुदाई में
कुछ दिन बीत गए तन्हाई में
मन में राहत की आस थी कितनी
केवल तुम्हारा साथ चाहा था मन ही मन
बिछड़ गए हम, तुम्हारे बिना
लड़कड़ाना मुश्किल हो गया है दिल का ये सफर
लौट आना नहीं चाहते अब
बस पलकों पे यादों के बसार
आंसू बहाने की, फिर से कोशिश करती हूँ
मगर दिल में तुम्हारी ख़ता का दर्द हमेशा रहेगा
बिछड़ गए हम, तुम्हारे बिना
मेरा दिल लगाता है कहीं किसी और का हाथ
-कवि लोकेश
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