तुम्हें छोड़ कर मैंने खुद को ढूंढ़ा,
कोई दुख हो या ख़ुशी, जाने कितने सवाल खुले रह गए।
तुम्हारे साथ गुज़री हर पल मुझे याद आता है,
क्या मैंने कुछ ख़ता की थी, क्या मुझसे भी प्यार पाया था।
तुम्हारे अब वो जान बनकर भी दिखते नहीं,
क्या तुमने मेरे ख्यालों को कभी समझा था।
अब जो सच्चाई सामने आयी है, मुझे दर्द दे रही है,
क्या हमारी तेरे बिना बिती सारी रातें बेमिसाल थीं।
आखिरी दास्तान है ये, जो हमने मिलकर लिखी थी,
शायद हमने समझा ही नहीं कि अब हमें अलग होना है।
तुम्हारे बिना जीना मुश्किल हो गया है,
पर अब ये लम्हे भी जीने के कुछ अलग हो गए हैं।
इस विचित्र पल का हाल कुछ यूँ है,
दोस्ती का जुआ कितना खेलता है, किसी को सच्चा दोस्त पाता है, और किसी को एक झटके में खो जाता है।
-कवि लोकेश
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