लम्बी रातें और तन्हाई,
बिना तेरे काफ़ी है सारे कई मायने।
तेरी यादों का जंगल खोकर,
खुद को खो बैठा हूँ दफन किया है मैं।
तू चली गई वो एक दिन,
दिल का टुकड़ा मन में छोड़ गई तू।
मोहब्बत की ख़ातिर सब कुछ खो दिया,
वो अब तेरे साहिल की तरह दूर गई हूँ ।
तेरे बिना जीने की मजबूरी,
सोचूँ भी तो तू ही आती है मेरी नजरों में ।
लेकिन जमाना कहता है “जो होता है अच्छे के लिए होता है”,
क्या यही सही है मेरे हालात के लिए भी?
-कवि लोकेश
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