विच्छेद: दिल की पुकार


वो दिन था, जब हम थे साथ,
हंसते खेलते थे हम दोनों का ख़ास सा रिश्ता।

प्यार की राह में चलते चलते,
हम भूल गए थे अपना हर वादा और अपनी मोहब्बत।

वक़्त के साथ हर रिश्ते की सुध आती है,
हमारा भी था ये ख़ास भाव पर हमने ध्यान नहीं दिया।

सच्ची मोहब्बत थी हमारी,
पर इस ज़िन्दगी में वो नहीं था प्यारी।

हमारी बैठक रही जमींदोस्ती ही,
वो खास लम्हे थे कितनी कमी।

आज हम अलग हैं, बिन बात के,
किनारे पे खड़े हैं दोनों, पर दिल भी अभी तक रोता है।

ख़ुदा करे कभी ना हो ऐसे पल,
किसी के दिल में ना दगा देना, ना ही पा लेना किसी की ज़िन्दगी का ख़ास पल।

-कवि लोकेश


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Lokesh T

एक हिंदी कवि के रूप में, मैं अपने शब्दों के माध्यम से जीवन की सुंदरता, जटिलता और बारीकियों को पकड़ने का प्रयास करता हूँ। अभिव्यक्ति की इस यात्रा में मेरे साथ जुड़ें क्योंकि मैं कविता की शक्ति के माध्यम से अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को साझा करता हूँ।

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