विराम
तू था ख्वाबों का साया,
अब मुझमें सिर्फ तन्हाई है।
तेरे साथ बिताए लम्हों की खुशबू,
खुद से छुपी एक गहरी जुदाई है।
यादों के सिलसिले में,
तेरे नाम की एक अदा है।
पर दिल के दरवाज़े पर,
अब मुझसे एक लकीर बड़ी है।
हँसी में छुपी थी जो,
वो दर्द की आवाज़ बन गई।
तू जो चला गया,
सब खुशियों की किताब बंद हो गई।
नज़रों में बसता था जो,
अब वो सपना खंडहर है।
तेरे बिना जीने की कोशिश,
दिल में एक अनकहा डर है।
समय गुजर जाएगा,
जख्म भरेंगे फुलों से।
पर तेरे बिना इस दिल में,
बस यादों के छाले रहेंगे भूले हुए।
विराम है ये कहानी का,
एक नया अध्याय शुरू होगा।
पर तेरे साए के बिना,
ये दिल अब भी अधूरा है।
-कवि लोकेश
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