बिछड़ते सपने
तुमसे मिले थे जब ख़्वाबों में,
दिल की धड़कन ने गाया था गीत,
अब राहें जुदा हैं, ख़ामोशी का आलम,
वो प्यार भरे पल, बस रह गए हैं मीत।
तुम्हारी हंसी की गूंज अब,
खामोशी में गुम हो गई,
जिन आँखों में देखा था मैंने,
उन्हें अब एक अजनबी लगी।
कभी जो थे साथी, अब हैं पराए,
जज़्बातों की कश्ती, दरक गई है।
सपनों का वह महल, अब टूटकर गिरा,
बस यादों की धूल, बिछ गई है।
तुमने छोड़ा ऐसा एक निशान,
जो दिल के हर कोने में खींचता है,
खुद को समेटना है अब हमें,
खोई हुई राहें फिर से तिल मिलाता है।
अब इन बिछड़े पल का क्या करूँ,
खुद से ही एक नया सफर शुरू करूँ।
बिछड़ने का दर्द भी एक सबक है,
खुशियों की ओर, जो फिर से चलूँ।
-कवि लोकेश
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