
उड़ान भर कर फिर रहा है मन,
ज़िंदगी की कामना, ज्ञान की पहचान।
रौशनी है तारों की तरह,
हर कोरा सांच के झगड़।
सपनों का पंख दुनिया को छू रहा,
इंजन के ध्वनि मे किनारा छू रहा।
महक रही है आसमानी खुशबू से,
हर इंसान का मन हूं।
हर रोज़ जागते हैं अपनी भावनाओं की मिट्टी,
सोरज हर दिन नए सपनों कर पड़ रहा।
उसकी दिशानिरा बढ़ रही हैं,
नामर्दी को चुकरों की आज खपार हैं।
उसपर, कोई नहीं कदम नहीं,
साहसी, वीर कै पल भर नहीं।
गर्व से उंची ज़मीन वह,
सपनों के दरिया की है लहर।
उसकी मेहनत की मिट्टी से है बनी,
उसके सिने की चमक में नए किरदार बसे हैं।
आज वह एक मुकरा जो पिढ़ी होगी,
हर लम्हे में ताजग़ महसूस कर होगी।
-कवि लोकेश
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