तेरी यादें अब भी छूटें नहीं
हमारी दिल की धधकनें सुनाई देती हैं
हमने तोड़ दी थी साथ जो बांधी थी
तेरे बिना अब हमको जीने में आई दुश्वारी है।
वादों की खुशियां अब सिर्फ यादें बनकर रह गईं
तेरे जाने के बाद अब ज़िंदगी बेमानी है
हर रोज़ सोच कर तेरी बातें बरसात की तरह आती हैं
कैसे भूलाएं तुझे, जो हमारी ज़िंदगी तकिया था।
तेरी यादें अब भी दिल को छू रही हैं
अब सुनाई नहीं देती हैं तेरी हंसी की आवाज़
कैसे भूलाएं तुझे, जो मेरे दिल के क़रीब था
तुझसे मिलकर हमने जाना था, दरवाज़ा क़यामत भी खोल सकता है।
-कवि लोकेश
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