विराम की थी रात
चाँद की चाँदनी में, तन्हाई की बातें,
दिल में उठते जज़्बात, अब कैसे हैं राहतें।
वो ख़ुशबू, वो हंसी, सब खो गया है,
एक अधूरी प्रेम कहानी, बस रो गया है।
सपनों की रंगीनियाँ, अब हैं धुंधली,
तेरे बिना ये राहें, हैं क्यों इतनी सुनसान।
जो वादे किए थे, अब सब ख़्वाब बने हैं,
दिल के उस कोने में, बस फूटे हैं आंसू।
तेरी यादों का साया, हर पल पीछा करे,
खुद से ही अब मैं, एक अजनबी सा लगे।
विराम की थी रात, धड़कनें भी चुप हैं,
समय की इस धारा में, मेरा क्या जज़्बा है?
आगे बढ़ने की चाहत, पर कैसे भूलूं तुझे?
इस दिल के कोने में, हमेशा बसा रहेगा तू।
बीते पल की मीठी यादें, मन को लुभाती हैं,
पर इस दर्द की कहानी, अब विदाई बन जाती है।
यही है फलक का खेल, यही है विपरीत लहर,
कभी खुशी के झूले, कभी ग़म के सफर।
आख़िर, यह भी तो सच है, हर अंत एक नई शुरुआत,
विराम की इस कहानी में, छुपी है नई ज़िंदगी की बात।
-कवि लोकेश
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