हंसी मुश्किल से रोक पाते,
हँसी का खजाना हम संभाल न पाते।
हंस हंस के पेट में दर्द होता,
हंसी में ही हमारा सारा खेल होता।
जब भी हंसी का सीना तनाव से भर जाता,
फिर अपने हाथ मुँह दबा कर रात कट जाती।
हंसी पे हंसी की प्याली, सुकून से सीना भरी,
हँसने वाले को कोई रास्ता मत रोकी।
हंसी बेकार का समय तो है ज्यादा,
पर मन में हंसी से ही सबसे प्यार अलग-अलग रंग।
हंसी वाले दिनों की चादर में छुपी,
हंसी से ही जीने का मूल मंत्र छुपी।
हंसी के जूनून को न कोई बतलाने जा पाए,
हँसी का कोई भी कोना हम से छिप न पाए।
हंसी के राज़ हम फिर भी न खोले,
हँसी के इन रंगों में हमें खुद को ढूंढ न पाए।
-कवि लोकेश
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