वक़्त आया है, तुम्हें छोड़ने का,
दिल की दहलीज़ पर तुमने छेड़ा था दाग।
मेरी आँखों के सामने तेरे चेहरे की मुस्कान,
अब धुँधली लगती है, जैसे आई हो अंधेरा चाँद।
तुम्हारी यादें भी तंग करती हैं मुझे,
पर मेरे दिल के दरवाज़े से बाहर हैं तुम।
कहीं ना कहीं मैंने भी तुम्हें तोड़ा होगा,
वरना कैसे कर सकता था मैं तुम्हें छोड़ कर।
अब मेरी जिंदगी में सुकून नहीं है,
तुम्हारे बिना हर दिन लगता है बेदाग।
मैं जानता हूँ, तुम भी उदास होगे,
पर अब हमारी कहानी कहीं भटक गई है।
तो फिर छोड़िए ना, इस दरमियानी संवाद को,
जानता हूँ, हमारा Breakup आना मनोभेद है।
-कवि लोकेश
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