तुम साथ चले, मेरे सपनों के सहारे,
पर गुज़र गया वक्त, जब तुमने किया प्यारे।
वो दिन थे खुशी के, हमारे साथ बिताए,
लेकिन आज क्यों लगे हैं, तुम्हारे बिन सहारे।
धीरे-धीरे बढ़े अलगी दूरियों का फासला,
कोई ना था ज़िम्मेदार, कोई ना था कमजोर।
शायद हमारा संबंध, था भगवान की इच्छा,
लेकिन मिट्टी के बने, थे हम दोनों मुट्ठी में दस्ता।
तुम ने चुना अपना अंजीरा, मेरे सजावे से ऊँचा,
मैं रह गया खोया, समझ में आया कुछ हो गया है मैं ऊँचा।
अब जानेवाले कहते हैं, कि अलविदा कर दो,
मानो मैंने खुद पर आज, हीरे का टुकड़ा कर दिया हो।
लेकिन याद आती है वो दिन, जब हम साथ थे हर पल,
अब आंसू आते हैं आँखों में, जब याद आता है हमारा विचार।
आज भी तुम्हारे लिए दिल धड़कता है, ये बात तुम हो जब पास,
लेकिन अब तुम नहीं हो मेरे साथ, अश्क दरिया बन गया है मेरा आवास।
अलविदा कह दिया तुमने, मैं भूल नहीं पाऊंगा कभी,
इस सच्चाई के साथ, मैं करूंगा अब रास्ता खुद की।
-कवि लोकेश
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