तुम्हारे बिना कैसे जीऊं,
ये सवाल दिन रात छूटे।
तुम्हारे बिना मेरे दिल को,
कैसे संभालूं, कैसे रूठें।।
फिर से याद आती है वो लम्हे,
जब हम थे साथ, एक साथ थे।
बिना कुछ कहे हैं हम दुर,
ये अलगाव तुम्हें कैसे समझे।।
क्यों तुम छोड़ दिया मुझे अकेले,
क्यों नहीं जानते दर्द मुझे।
तुम्हें मेरी जरूरत क्या नहीं थी,
क्या मैंने जोखिम लिया था तुम्हें।।
लेकिन फिर भी मैं ठहर गया एकाकी,
अपनी तन्हाई में बिताऊंगा।
कहीं न कहीं गुनहा मेरा था,
शायद मैं ही गलत था, तुमसे जुदा हो गया।।
-कवि लोकेश
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